दो दिग्गजों की सियासी जंग दिलचस्प, उत्तर पूर्वी दिल्ली लोकसभा सीट विकास के पैमाने पर कहां है?

सत्ता संग्राम में सबसे हॉट सीट बनी उत्तर-पूर्वी दिल्ली में सियासी बिसात बिछने लगी है। मुकाबला दिलचस्प है और देश की नजरें भी इस पर टिकी हैं। दोनों दलों के सेनापति अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए मैदान में हैं। दोनों तरफ से सियासी प्रहार भी शुरू हो गया है। इन सबके बीच भाग्यविधाता अपनी बेहतरी की उम्मीद में है।
देश की सबसे घनी बसावट वाले उत्तर- पूर्वी दिल्ली संसदीय क्षेत्र में लोगों की जिंदगी ठहर सी गई है। कई इलाकों में अब तक विकास की रोशनी नहीं पहुंच सकी है, जबकि देश की संसद से यह महज दस किमी दूर है। आपको हैरानी हो सकती है, लेकिन कई काॅलोनियों में मकानों के दरवाजे बदबू फेंकते नालों के सामने खुलते हैं। करीब तीन लाख की आबादी वाले सोनिया विहार को ही लें, गर्मी में भी यहां की गलियां गंदे पानी में डूबी हैं।

 

 

 

दो दिग्गजों की सियासी जंग दिलचस्प, उत्तर पूर्वी दिल्ली लोकसभा सीट विकास के पैमाने पर कहां है?

ऐसी ही एक गली में सियासी मिजाज की बात करने पर धर्मेंद्र गुप्ता बताते हैं, मुकाबला तो कांटे का हो गया है, लेकिन इससे होना क्या? हम सबको अब तक बुनियादी अधिकार भी नहीं मिला है। गलियां आप देख ही रहे हैं। दूसरी बुनियादी सुविधाएं भी नदारद हैं। बीते तीन दशकों में, जब से यहां रहना हुआ है, सिवा सांसदों, विधायकों व पार्षदों के, बदलते कुछ खास नहीं देखा। सरकारें भी इस बीच कई आईं और चली भी गईं।
अपनी दैनिक परेशानियों के बावजूद लोगों की चुनावों पर गहरी नजर है। सियासी सरगर्मी पर अपनी बदहाली का जिक्र करने के बाद असलम प्रधान बड़े चाव से सियासत पर चर्चा करते हैं। उनका भी मानना है कि भाजपा के मनोज तिवारी के सामने कांग्रेस के कन्हैया कुमार के आने से लड़ाई कांटे की हो गई है। जबकि अभी तक चुनाव एकतरफा लग रहा था।
ऊंट किस करवट बैठेगा, इसका अंदाज लगाना अभी से मुश्किल है। चुनाव चढ़ने के साथ तस्वीर स्पष्ट होगी। लेकिन भाजपा को जोर ज्यादा लगाना पड़ेगा। इस बार कांग्रेस से वॉकओवर नहीं मिलने वाला है। दबी जुबान में भाजपा नेता भी मान रहे हैं कि मुकाबला अब एकतरफा नहीं है, लड़ाई कांटे की होगी। इसकी वजह कन्हैया कुमार को लेकर बनी बनाई धारणा है। दोनों प्रत्याशियों की अपनी-अपनी खूबी और खामी है। अच्छा वक्ता होने के साथ कन्हैया युवाओं के बीच पसंद किए जाते हैं। जबकि मनोज तिवारी की पूर्वांचली समाज में गहरी पैठ है।

बॉलीवुड का भी लगेगा तड़का
उत्तर-पूर्वी दिल्ली सबसे हॉट सीट बन गई है।  प्रचार में बॉलीवुड का भी तड़का लगेगा। वाकपटुता भी खूब सुनने को मिलेगी। वोटों के ध्रुवीकरण की राजनीति भी होगी। चुनावी विश्लेषकों की माने तो वोटों के ध्रुवीकरण की सियासत भी तेज होगी। भाजपा के फायर ब्रांड नेता कन्हैया पर वार करेंगे तो कांग्रेस नेता के सिपहसालार भी भाजपा को घेरने में पीछे नहीं रहेंगे। ढपली की थाप पर जेएनयू की छात्र-छात्राएं भी झुग्गियों व अनधिकृत कॉलोनियों में भाजपा की पोल खोलने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे। 2019 में जिस तरह से बेगूसराय लोकसभा चुनाव में मशहूर गीतकार जावेद अख्तर, शबाना आजमी, स्वरा भास्कर भी कन्हैया कुमार का प्रचार करने में पीछे नहीं रहे, वैसे ही उत्तर-पूर्वी दिल्ली में भी इस तरह के फिल्मी सितारे नजर आएंगे।

राह नहीं आसान…
बीते लोकसभा चुनाव 2019 में मनोज तिवारी को 54 प्रतिशत वोट मिले थे। कांग्रेस और आप को मिलाकर 32 फीसदी वोट मिले थे। इस बार दोनों दल गठबंधन के तहत चुनाव लड़ रहे हैं। इस वोट प्रतिशत में बड़ा अंतर था। इसे पाटना कन्हैया कुमार के लिए चुनौती भी होगी। उधर, दो बार से सांसद रहे मनोज तिवारी को भी अपने क्षेत्र के कार्यकर्ताओं की नाराजगी दूर करना आसान नहीं होगा। हालांकि, उनकी पत्नी क्षेत्र में घूमकर नाराजगी को पाटने में जरूर जुटी हुई हैं।

विशेषज्ञ बोले : रोचक होगा चुनाव
डीयू के प्रोफेसर व राजनीतिक विश्लेषक चंद्रचूड़ सिंह का मानना है कि कन्हैया कुमार की उम्मीदवारी से नार्थ ईस्ट दिल्ली का चुनाव रोचक हो गया है। दोनों उम्मीदवारों के अपने पॉजिटिव और नेगेटिव पॉइंट हैं। इतना जरूर है कि चुनावी नतीजे जो भी रहे, देश की राजनीति की दिशा दिल्ली लोकसभा चुनाव में जीतने वाले सांसद जरूर तय करेंगे।

पूर्वांचली वोटों के विभाजन की स्थिति में तिवारी को कैडर वोट बढ़त दे देंगे। लेकिन अगर मत विभाजन नहीं हुआ, कांग्रेस और आप ने एकजुटता दिखाई तो सत्ता विरोधी लहर का असर मनोज तिवारी पर भारी पर सकता है।

पीएम मोदी की लोकप्रियता का लाभ मनोज तिवारी को मिलेगा। जबकि कन्हैया कुमार को आम आदमी पार्टी के संगठन पर सवारी करनी होगी, जो बहुत आसान नहीं होगा।

सिग्नेचर ब्रिज बना पहचान
यमुना नदी पर बना सिग्नेचर ब्रिज उत्तर पूर्वी संसदीय क्षेत्र की पहचान बनता जा रहा है। इससे न सिर्फ लोगों की आवाजाही आसान हुई है, बल्कि इसका बेहतरीन ढांचा लुभाता भी है। दूसरी तरफ नदी के किनारे विकसित यमुना बॉयोडायवर्सिटी पार्क यमुना को निर्मल करने की उम्मीद जगाता है। छोटे स्तर पर ही सही, लेकिन यहां नदी को साफ करने का तरीका समझा जा सकता है। वहीं, यमुना विहार, दिलशाद गार्डन व तिमारपुर के सीमित दायरे में पॉश कालोनियां भी हैं।अनधिकृत कॉलोनियों में सुविधाओं का अभाव
अनधिकृत कॉलोनियों में पानी, सीवर, सड़क, नाली जैसी बुनियादी सुविधाओं का अभाव है। गोकलपुर व सीलमपुर नाले के किनारे सघन बसावट वाली कई बस्तियों में अतिक्रमण के कारण बारिश में अमूमन नाले का गंदा पानी घरों में भर जाता है। इससे यहां के निवासियों को खासी परेशानी का सामना करना पड़ता है।

संसदीय क्षेत्र का इतिहास
उत्तर- पूर्वी दिल्ली संसदीय क्षेत्र 2009 के परिसीमन के बाद अस्तित्व में आया। दस विधान सभा सीटों के साथ इस सीट का गठन हुआ। इससे पहले यह पूर्वी दिल्ली लोकसभा सीट का हिस्सा था, जिसका गठन 1967 में हुआ था। बीते तीन चुनावों में यह सीट एक बार कांग्रेस व दो बार भाजपा के हिस्से में रही। जबकि दस विधान सभाओं में से सात फिलहाल आम आदमी पार्टी और तीन भाजपा के पास हैं।

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